नाटक-एकाँकी >> आप न बदलेंगे आप न बदलेंगेममता कालिया
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बहुत ही सामयिक और महत्वपूर्ण थीम को उठाया गया नाटक ...
‘‘मैंने तुम्हारा नाटक पढ़ लिया था। सबसे पहली बात तो
यह कि इसमें एक बहुत ही सामयिक और महत्वपूर्ण थीम को उठाया गया है। दहेज
के सवाल पर हर स्तर पर कुछ न कुछ लिखा जाना चाहिए और मुझे खुशी है कि
तुमने इस समस्या पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए नाटक का सहारा लिया।
दूसरे तुम्हारी भाषा में बहुत कसावट है और नाटकीयता भी है। प्रारम्भिक
दृश्य बड़े सघन लगते हैं और कार्य-व्यापार में भी एक तरह की नाटकीय
क्रूरता का अहसास होता है जो ज़रूरी है।’
–नेमिचन्द्र जैन, प्रख्यात रंग-आलोचक
‘इधर मैंने अपने विद्यार्थियों को ‘यहाँ रोना मना
है’
एकांकी बढ़ाया। एकांकी सबको बहुत अच्छा लगा।’
के. एम. मालती
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
गवर्नमेंट आर्ट्स एवं साइंस कॉलेज
कालीकट, केरल
अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
गवर्नमेंट आर्ट्स एवं साइंस कॉलेज
कालीकट, केरल
आपकी छोटी लड़की
पात्र-परिचय
1. टुनिया (तूर्णा) : परिवार की छोटी लड़की, तेरह साल
2. पपीहा : परिवार की बड़ी लड़की, सत्रह साल
3. मम्मी : टुनिया और पपीहा के माता
4. पापा : टुनिया और पपीहा के पिता
5. नौकर : रामजी
6. लड़के : पपीहा के सहपाठी
7. मुक्तिदूत : एक साहित्यकार
8. आंटी : पड़ोसिन
2. पपीहा : परिवार की बड़ी लड़की, सत्रह साल
3. मम्मी : टुनिया और पपीहा के माता
4. पापा : टुनिया और पपीहा के पिता
5. नौकर : रामजी
6. लड़के : पपीहा के सहपाठी
7. मुक्तिदूत : एक साहित्यकार
8. आंटी : पड़ोसिन
दृश्य एक
एक मध्यवर्गीय परिवार का मकान। कॉलोनी में आसपास अनेक एक जैसे मकान। माँ
चिट्ठी मोड़कर चिपकाती है और आसपास देखती है।
ममी : टुनिया ओ टुनिया !
टुनिया दूसरे कमरे में मेज पर बैठी होमवर्क कर रही है। माँ की आवाज सुनकर बैठक में आती है।
टुनियाः जरा भाग कर यह चिट्ठी तो डाल आ।
टुनिया : (हाथ बढ़ाकर) लाओ दो।
ममी : और आते हुए पन्द्रह नंबर वालों से अपनी कटोरी भी लेती आना। अच्छा सरसों का साग भेजा मैंने ! लगता है साग के साथ कटोरी भी खा गये।
(बड़ी बहन पपीहा पास ही दिवान पर पैर फैलाये कानों पर हैडफोन लगाये वॉकमैन सुन रही है और झूम रही है।)
पपीहा : टुत्रो पहले मुझे पानी पिला दे।
टुनिया बहन को पानी का ग्लास देती है। माँ उसकी तरफ घूर कर देखती है।
ममी : गई नहीं तू ! आज की डाक गयी तो चिट्ठी परसों निकलेगी।
टुनिया : मैं बस यों गयी और यों आई।
(जाती है। माँ दूसरे कमरे में जाकर लेट जाती हैं। उनकी आँख लग जाती है। कुछ देर बाद कॉल बैल बजती है। पपीहा झुँझलाते हुए दरवाजा खोलती है।)
टुनिया : ममी ?
पपीहा इशारे से बताती हैं कि ममी सो रही हैं। टुनिया अपने कमरे की तरफ जाने लगती है।
पपीहा : ऐ टुत्रो कहाँ चली, बैठ इधर मेरे पास। देख कल मेरा हिन्दी का टैस्ट है और मुझे कुछ याद नहीं। तू ये दो चैप्टर सुना दे मुझे।
टुनिया : लाओ दीदी। कौन-सा सुनाऊँ, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ?
पपीहा : नहीं वह तो मुझे याद है। मैथिलीशरण गुप्त सुना दे।
टुनिया पुस्तक से पढ़ती है।
टुनिया : आपका जन्म 1886 में चिरगाँव जिला झाँसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। कविता की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली।’
पपीहा : तू तो फ्रंटियर मेल की तरह चली जा रही है। धीरे धीरे पढ़।
टुनिया : ‘गुप्तजी ने साकेत में कैकेयी की कल्मष-कालिमा को धो डाला और अपेक्षित उर्मिला को नया जीवन दिया।
पपीहा : टुन्नो बताऊँ आज लायब्रेरी में क्या हुआ। मैं बैठी पढ़ रही थी कि एक लड़का आया और उसने एक चिट मेरे पास सरका दी। उस पर लिखा था ‘हम तुमसे मुहब्त करके सनम रोते भी रहे, हँसते भी रहे।’ पता है मैंने क्या किया। मैंने मुहब्बत शब्द काट कर नफरत लिख दिया और नीचे अपने दस्तखत कर दिये।
टुनिया : ओफ्फोह दीदी तभी तो तुम्हें पढ़ा लिखा कुछ याद नहीं होता है। सुनती तो हो नहीं।
पपीहा : ला दे मेरी किताब ! जरा सा पढ़वा क्या लिया दिमाग दिखा रही है।
घंटी बजती है।
टुनिया : दीदी तुम खोल दो जरा।
पपीहा : ना बाबा, मुझे पढ़ना है, तू उठ।
माँ झुँझलाती हुई अन्दर के कमरे से आती हैं। दरवाजा खोलती हैं।
माँ : कौन
चिट्ठी कहकर डाकिया अन्दर चिट्ठी देता है।
माँ : (चिढ़कर) घंटी न बजाया करो। (लड़कियों की तरफ गुस्से से देखकर) दोनों की दोनों बैठी हैं पर मजाल है जो एक भी उठ जाये। जरा खयाल नहीं कि माँ सो रही है। टुत्रो, कोलीन अभी तक नहीं आई।
टुनिया : नहीं ममी, उसका भाई रास्ते में मिला था। कह रहा था वह आज नहीं आयेगी, पिक्चर देखने गई है।
ममी : तो तूने पहले क्यों नहीं बताया। अब इस वक्त मैं बर्तन मलूँ या खाना बनाऊँ ! अच्छी मुसीबत है !
टुनिया : लाओ मैं कर देती हूँ।
माँ : पपीहा तू जल्दी से सब्जी काट।
पपीहा : आँ–मेरा कल टैस्ट है।
टुनिया : रहने दो ममी, दीदी को पढ़ने दो।
ममी : बताओ, कोलीन आई नहीं है, सारा काम पड़ा है। खाने को सब हैं, काम करने को कोई नहीं। जो करूँ मैं करूँ, जहाँ मरूँ मैं मरूँ।
टुनिया : ममी मैं कर तो रही हूँ।
माँ : (खीझकर) यह देख तेरा किया काम। सुबह अदरक लाई तू ! एकदम सूखी और छूँछ वाली। अदरक तो आजकल बादाम जैसी आ रही है।
टुनिया : ममी वह सब्जी वाला बिल्कुल बात नहीं सुनता, ऊपर से डाँट देता है।
माँ : देख लिया न। काम धाम किसी से नहीं होता। बस एक मैं रह गई हूँ मरने को।
माँ रसोई में नल खोलती है। नल में पानी नहीं आ रहा है।
माँ : टुनिया, ऐ टुन्नो, नल में एक बूँद पानी नहीं आ रहा। कैसे तो खाना बने, कैसे बने चाय।
टुनिया : ममी तुम बार बार उठा देती हो ! इस तरह हो चुका होमवर्क !
माँ उसे एक छोटी बाल्टी पकड़ाती है।
माँ : जा जरा नीचे जाकर डॉक्टर साहब के यहाँ से एक बाल्टी पानी ला दे। चाय तो बने।
टुनिया : मेरा सारा होमवर्क पड़ा है ममी।
माँ : यह भी होमवर्क ही है, जल्दी जा।
टुनिया नीचे के मकान में जाकर कॉल बैल बजाती है। नौकर दरवाजा खोलता है।
टुनिया : आंटी हैं ?
रामजी : नहीं !
टुनिया : रामजी, हमें एक बाल्टी पानी लेना है।
रामजी : ले लो जाकर।
टुनिया अन्दर रसोई में उनका नल खोल कर देखती है। पानी वहाँ भी नहीं आ रहा। इस बीच रामजी दरवाजा खुला छोड़ कर रसोई में आकर टुनिया के एकदम पास खड़ा हो गया है।
रामजी : इधर आओ, हम पानी देते हैं तुम्हें।
उसकी अजब मुद्रा देखकर टुनिया बाल्टी फेंककर चीख कर बाहर भागती है। बाल्टी झनझना कर गिरती है। टुनिया एक साँस में सीढ़ियाँ चढ़ जाती है। माँ उसे खाली हाथ देख क्रुद्ध हो जाती है।
माँ : नहीं लाई पानी। अब पीना शाम की चाय। एक छोटी सी बाल्टी भर लाने में इसकी कलाई मुड़ती है। इस घर में जो करूँ मैं करूँ, जहाँ मरूँ मैं मरूँ।
टुनिया बहुत विचलित है। पहले दरवाजा पकड़कर हाँफती है, फिर माँ की तरफ देखती है। किसी तरह सिर पर हाथ रख कर संयत होने की कोशिश करती है।
टुनिया : पानी तो नीचे भी नहीं आ रहा।
माँ : तो फिर बाल्टी कहाँ फेंक आई ? अब मैं सारे घरों में जाकर बाल्टी ढूँढंगी ? क्या जमाना आ गया है। कोई जरा सा काम नहीं करना चाहता। एक हम थे। हमारी माँ अगर इशारा भी करती तो हम सिर के बल खड़े हो जाते थे।
(पपीहा अन्दर के कमरे में आती है। इस बीच कपड़े बदल कर वह तरोताजा हो गई है। उसके चेहरे पर घर की गतिविधियों से कोई सरोकार नहीं है।)
पपीहा : ममी मैंने पढ़ाई कर ली। जरा डांस प्रेक्टिस के लिए प्रेमा के घर जा रही हूँ।
माँ : घर में नल नहीं आ रहा है।
पपीहा : (लापरवाही से) नहीं आ रहा तो आ जायेगा। टुन्नो जरा दर्जी से मेरा लंहगा ओढ़नी लाकर रखना। परसों डांस कॉम्पटीशन है कॉलेज में।
टुनिया : अच्छा ! (पपीहा जाती है)
माँ : ए टुनो मेरा कत्थई ब्लाउज भी दर्जी को देकर आना कहना इतना कसा बनाया है कि पूछो मत। सारा कपड़ा बरबाद कर दिया। मेरी तरफ से डाँट कर आना उसे और देख ब्लाउज ढीला भी करवा लाना।
नल से पानी गिरने लगता है। माँ हड़बड़ा कर रसोई में चली जाती है। कॉल बैल बजती है। टुनिया दरवाजा
ममी : टुनिया ओ टुनिया !
टुनिया दूसरे कमरे में मेज पर बैठी होमवर्क कर रही है। माँ की आवाज सुनकर बैठक में आती है।
टुनियाः जरा भाग कर यह चिट्ठी तो डाल आ।
टुनिया : (हाथ बढ़ाकर) लाओ दो।
ममी : और आते हुए पन्द्रह नंबर वालों से अपनी कटोरी भी लेती आना। अच्छा सरसों का साग भेजा मैंने ! लगता है साग के साथ कटोरी भी खा गये।
(बड़ी बहन पपीहा पास ही दिवान पर पैर फैलाये कानों पर हैडफोन लगाये वॉकमैन सुन रही है और झूम रही है।)
पपीहा : टुत्रो पहले मुझे पानी पिला दे।
टुनिया बहन को पानी का ग्लास देती है। माँ उसकी तरफ घूर कर देखती है।
ममी : गई नहीं तू ! आज की डाक गयी तो चिट्ठी परसों निकलेगी।
टुनिया : मैं बस यों गयी और यों आई।
(जाती है। माँ दूसरे कमरे में जाकर लेट जाती हैं। उनकी आँख लग जाती है। कुछ देर बाद कॉल बैल बजती है। पपीहा झुँझलाते हुए दरवाजा खोलती है।)
टुनिया : ममी ?
पपीहा इशारे से बताती हैं कि ममी सो रही हैं। टुनिया अपने कमरे की तरफ जाने लगती है।
पपीहा : ऐ टुत्रो कहाँ चली, बैठ इधर मेरे पास। देख कल मेरा हिन्दी का टैस्ट है और मुझे कुछ याद नहीं। तू ये दो चैप्टर सुना दे मुझे।
टुनिया : लाओ दीदी। कौन-सा सुनाऊँ, भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ?
पपीहा : नहीं वह तो मुझे याद है। मैथिलीशरण गुप्त सुना दे।
टुनिया पुस्तक से पढ़ती है।
टुनिया : आपका जन्म 1886 में चिरगाँव जिला झाँसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। कविता की प्रेरणा उन्हें अपने पिता से मिली।’
पपीहा : तू तो फ्रंटियर मेल की तरह चली जा रही है। धीरे धीरे पढ़।
टुनिया : ‘गुप्तजी ने साकेत में कैकेयी की कल्मष-कालिमा को धो डाला और अपेक्षित उर्मिला को नया जीवन दिया।
पपीहा : टुन्नो बताऊँ आज लायब्रेरी में क्या हुआ। मैं बैठी पढ़ रही थी कि एक लड़का आया और उसने एक चिट मेरे पास सरका दी। उस पर लिखा था ‘हम तुमसे मुहब्त करके सनम रोते भी रहे, हँसते भी रहे।’ पता है मैंने क्या किया। मैंने मुहब्बत शब्द काट कर नफरत लिख दिया और नीचे अपने दस्तखत कर दिये।
टुनिया : ओफ्फोह दीदी तभी तो तुम्हें पढ़ा लिखा कुछ याद नहीं होता है। सुनती तो हो नहीं।
पपीहा : ला दे मेरी किताब ! जरा सा पढ़वा क्या लिया दिमाग दिखा रही है।
घंटी बजती है।
टुनिया : दीदी तुम खोल दो जरा।
पपीहा : ना बाबा, मुझे पढ़ना है, तू उठ।
माँ झुँझलाती हुई अन्दर के कमरे से आती हैं। दरवाजा खोलती हैं।
माँ : कौन
चिट्ठी कहकर डाकिया अन्दर चिट्ठी देता है।
माँ : (चिढ़कर) घंटी न बजाया करो। (लड़कियों की तरफ गुस्से से देखकर) दोनों की दोनों बैठी हैं पर मजाल है जो एक भी उठ जाये। जरा खयाल नहीं कि माँ सो रही है। टुत्रो, कोलीन अभी तक नहीं आई।
टुनिया : नहीं ममी, उसका भाई रास्ते में मिला था। कह रहा था वह आज नहीं आयेगी, पिक्चर देखने गई है।
ममी : तो तूने पहले क्यों नहीं बताया। अब इस वक्त मैं बर्तन मलूँ या खाना बनाऊँ ! अच्छी मुसीबत है !
टुनिया : लाओ मैं कर देती हूँ।
माँ : पपीहा तू जल्दी से सब्जी काट।
पपीहा : आँ–मेरा कल टैस्ट है।
टुनिया : रहने दो ममी, दीदी को पढ़ने दो।
ममी : बताओ, कोलीन आई नहीं है, सारा काम पड़ा है। खाने को सब हैं, काम करने को कोई नहीं। जो करूँ मैं करूँ, जहाँ मरूँ मैं मरूँ।
टुनिया : ममी मैं कर तो रही हूँ।
माँ : (खीझकर) यह देख तेरा किया काम। सुबह अदरक लाई तू ! एकदम सूखी और छूँछ वाली। अदरक तो आजकल बादाम जैसी आ रही है।
टुनिया : ममी वह सब्जी वाला बिल्कुल बात नहीं सुनता, ऊपर से डाँट देता है।
माँ : देख लिया न। काम धाम किसी से नहीं होता। बस एक मैं रह गई हूँ मरने को।
माँ रसोई में नल खोलती है। नल में पानी नहीं आ रहा है।
माँ : टुनिया, ऐ टुन्नो, नल में एक बूँद पानी नहीं आ रहा। कैसे तो खाना बने, कैसे बने चाय।
टुनिया : ममी तुम बार बार उठा देती हो ! इस तरह हो चुका होमवर्क !
माँ उसे एक छोटी बाल्टी पकड़ाती है।
माँ : जा जरा नीचे जाकर डॉक्टर साहब के यहाँ से एक बाल्टी पानी ला दे। चाय तो बने।
टुनिया : मेरा सारा होमवर्क पड़ा है ममी।
माँ : यह भी होमवर्क ही है, जल्दी जा।
टुनिया नीचे के मकान में जाकर कॉल बैल बजाती है। नौकर दरवाजा खोलता है।
टुनिया : आंटी हैं ?
रामजी : नहीं !
टुनिया : रामजी, हमें एक बाल्टी पानी लेना है।
रामजी : ले लो जाकर।
टुनिया अन्दर रसोई में उनका नल खोल कर देखती है। पानी वहाँ भी नहीं आ रहा। इस बीच रामजी दरवाजा खुला छोड़ कर रसोई में आकर टुनिया के एकदम पास खड़ा हो गया है।
रामजी : इधर आओ, हम पानी देते हैं तुम्हें।
उसकी अजब मुद्रा देखकर टुनिया बाल्टी फेंककर चीख कर बाहर भागती है। बाल्टी झनझना कर गिरती है। टुनिया एक साँस में सीढ़ियाँ चढ़ जाती है। माँ उसे खाली हाथ देख क्रुद्ध हो जाती है।
माँ : नहीं लाई पानी। अब पीना शाम की चाय। एक छोटी सी बाल्टी भर लाने में इसकी कलाई मुड़ती है। इस घर में जो करूँ मैं करूँ, जहाँ मरूँ मैं मरूँ।
टुनिया बहुत विचलित है। पहले दरवाजा पकड़कर हाँफती है, फिर माँ की तरफ देखती है। किसी तरह सिर पर हाथ रख कर संयत होने की कोशिश करती है।
टुनिया : पानी तो नीचे भी नहीं आ रहा।
माँ : तो फिर बाल्टी कहाँ फेंक आई ? अब मैं सारे घरों में जाकर बाल्टी ढूँढंगी ? क्या जमाना आ गया है। कोई जरा सा काम नहीं करना चाहता। एक हम थे। हमारी माँ अगर इशारा भी करती तो हम सिर के बल खड़े हो जाते थे।
(पपीहा अन्दर के कमरे में आती है। इस बीच कपड़े बदल कर वह तरोताजा हो गई है। उसके चेहरे पर घर की गतिविधियों से कोई सरोकार नहीं है।)
पपीहा : ममी मैंने पढ़ाई कर ली। जरा डांस प्रेक्टिस के लिए प्रेमा के घर जा रही हूँ।
माँ : घर में नल नहीं आ रहा है।
पपीहा : (लापरवाही से) नहीं आ रहा तो आ जायेगा। टुन्नो जरा दर्जी से मेरा लंहगा ओढ़नी लाकर रखना। परसों डांस कॉम्पटीशन है कॉलेज में।
टुनिया : अच्छा ! (पपीहा जाती है)
माँ : ए टुनो मेरा कत्थई ब्लाउज भी दर्जी को देकर आना कहना इतना कसा बनाया है कि पूछो मत। सारा कपड़ा बरबाद कर दिया। मेरी तरफ से डाँट कर आना उसे और देख ब्लाउज ढीला भी करवा लाना।
नल से पानी गिरने लगता है। माँ हड़बड़ा कर रसोई में चली जाती है। कॉल बैल बजती है। टुनिया दरवाजा
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